Posted by : Anonymous

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 ilzaam Shayari - वेलकम  दोस्तों आप सभी लोगो का मैं बहुत ही आभारी हु आप लोगो को दिल से थैंक्स, आज जो हम शायरी आपके लिए लेकर आये है वो है इलज़ाम शायरी दोस्तों अगर कोई आप पर कोई आप पर बेफ़िज़ू का इल्ज़ाम लगा दे और आप कुछ कर न पाए तो कितना बुरा लगता है आपको पता है ये इल्ज़ाम गलता है बेफ़िज़ू है और आप उस वक़्त कुछ नहीं कर पते है तो बहुत ही बुरा लगता है ऐसे में हम आपके लिए लेकर आये है इलज़ाम शायरी जिसे भेज कर आप उसे बता सकते है पर लगा इलज़ाम  गलत है 

ilzaam Shayari

इल्ज़ाम ये था कि झुठा हूँ,मैं 

‘सज़ा’ ये है कि उनसे रिहा हूँ,मैं


ilzaam Shayari

हँस कर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंने

ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर मढ़ने का


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कुछ ख़्वाब थे जो हकीकत में टूटे हैं

  इल्ज़ाम किसे दें अ 'जी' हम ही


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सबको फिक्र है अपने आप को सही साबित करने की

जैसे जिन्दगी नहीं कोई “इल्ज़ाम” है

कोई इल्जाम रह गया हो तो वो भी दे दो

पहले भी हम बुरे थे, अब थोड़े और सही


ilzaam Shayari

इल्ज़ाम तो हर हाल में काँटों पे ही लगेगा,

ये सोचकर अक्सर फूल भी चुपचाप ज़ख्म दे जाते है 

हुस्न वालों ने क्या कभी की ख़ता कुछ भी?

ये तो हम हैं सर इलज़ाम लिये फिरते हैं।


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सबको फिक्र है अपने आप को सही साबित करने की

जैसे जिन्दगी नहीं कोई इल्जाम है


वफ़ा मैंने नहीं छोड़ी मुझे इलज़ाम मत देना

मेरा सबूत मेरे अश्क हैं मेरा गवाह मेरा दर्द है

मेरी नजरों की तरफ देख जमानें पर न जा

इश्क मासूम है इल्जाम लगाने पर न जा


मेरी तबाही का इल्ज़ाम अब शराब पर हैं

मैं और करता भी क्या #तुम पे आ रही थी बात

उदास जिन्दगी, उदास वक्त उदास मौसम.. 

कितनी चीजो पे “इल्ज़ाम” लगा है तेरे ना होने से


ये मिलावट का दौर हैं साहब” यहाँ

इल्जाम लगायें जाते हैं तारिफों के लिबास में

तूने ही लगा दिया इलज़ाम-ए-बेवफाई,

अदालत भी तेरी थी गवाह भी तू ही थी


बस यही सोचकर कोई सफाई नहीं दी हमने।

कि इलज़ाम झूठे ही सही पर लगाये तो तुमने हैं।

तुम मेरे लिए कोई “इल्ज़ाम” न ढूँढ़ो

चाहा था तुम्हे, यही “इल्ज़ाम” बहुत है








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